तुम मेरे दीपक बन जाना..
तुम मेरे दीपक बन जाना, मैं बाती ही बन जाऊंगा ।
मैं अक्सर रोज अंधेरी गलियों में दीपक जलवाऊंगा ।।
ये वादा है मेरा तुमसे , ज्ञान के दिये जलाऊंगा ।
जो छिपा हुआ है अंधियारा, उसको मैं दूर भगाऊंगा ।।
न जरूरत है मुझे घी की, मैं बिन घी दिये जलाऊंगा ।
इक दिन बन ज्ञान का दीपक, मैं सबको खुशियाँ दिलाऊंगा ।
मात-पिता को शीश झुकाकर, महापुरुषों को करूँ स्मरण । रहै न कोई अनपढ़ इस चमन में, ऐसी मैं ज्योत जलाऊँगा ।।
पंहुँचा न उजाला जिन गलियो में, उनमें मैं दीप जलाऊँगा ।
शिक्षित करके जन-जन को, गली-गली में शिक्षा फैलाऊंगा ।
रही गन्दगी जिनके मन में, उनको भी बहुत सिखलाऊंगा ।
भाईचारा कायम करके ,समरसता का सिद्धांत बताऊंगा ।।
बहुत हुआ अँधियारा चमन में, अशिक्षा ओर अनेकता का ।
सब कुप्रथाओं का करके खात्मा, शिक्षा का दीप जलाऊँगा ।
मेरे चमन में त्यौहार बहुत हैं, इस गुलिस्तां की बर्बादी के ।
जन -जन से मैं करूँ ये विनती, हर जन को मैं बतलाऊँगा ।।
हैं त्यौहार बहुत अपने भी, इन सबका ज्ञान सिखाऊंगा ।
संविधान दिवस ओर भीम जयंती, सबके साथ मनाऊंगा ।।
खुशियाँ मिले हज़ार आपको, ऐसी में ज्योति जलाऊँगा ।
फैले ऐसा ज्ञान चमन में, नाम “आघात” का याद दिलाऊँगा।।
आर एस बौद्ध “आघात”
8475001921,