तुम मेरी हो…
यकिन रख मैं तेरा ही हूँ,
पर कैसे भरोसा करूँ कि,
तू किसी और सी नहीं..
तुमसे मिलने से पहले
अपनी हाथों की लकीरों में
हर पल तेरा ही नाम ढूँढ़ा मैंने
तुमसे मिलने के बाद
किसी और की तकदीर में
तुमको कैसे शामिल करने दे सकता हूँ मैं
तुम समझो मैं स्वार्थी हूँ
कोई बात नहीं
पर तुमको खोता देख सकूँ मैं
इतना भी निर्लज्ज नहीं मैं
तुम मेरी जरूरत नहीं, मेरी ख्वाहीश हो
शायद ये कहने के शब्द नहीं होंगे मेरे पास
पर मैं तुम्हारा हो चुका हूँ
ये समझने जज्बात कहाँ गए तुम्हारे
हर बात को दोहरा दूँ
ऐसा इंसान नहीं हूँ मैं
इस बार प्रेम मेरा नि:स्वार्थ हैं
ये सोच के मैं खुद ही हैरान खड़ा हूँ
तुमको पाने की कोई लालसा तो छोड़ो
कल्पना भी नहीं हैं
फिर भी कहता हूँ जबतक हो तुम
तुम मेरी हो….
हर बार इस आहट में रहता हूँ कि
अब के तुम पुकारोगी
तुम काहे को पुकारोगी
जो फुरसत में अपने जिती हो
कुछ कह दूँ जरा तो
तिलमिला सी तुम उठती हो
कुछ ना कह दूँ तो भी
दोष मेरे सिर ही मढ़ती हो
तुमसे प्रेम पाने की ख्वाहीश
मुझे तुम तक हर पल बाँधे रखती हैं
इस पल तुम मेरी होती हो
अगले ही पल किसी और के
खयालों मे जिती हो
हर बात समझना मजबूरी हैं मेरी
पुरूष वर्ग का चोला पहना रखा हैं मैंने
प्रेम करूँ तो समझा ना सकूँ मैं
ये कैसी अब बैचेेनी सी है मेरी
तुमको अपने दर्द ही दिखते हैं
अपने आँसू मैं पी जाता हूँ
इंसान हूँ कोई पत्थर नही हूँ
जो हर कोई पूज जाता हैं
हाँ .. तकदीर का मारा हूँ
प्रेम शास्त्र में हर पन्ना हारा हूँ
अब भी कुछ विरह का आक्रोश हैं मुझमें
फिर भी,
जो आखरी इन पंक्ति में भी
मैंने सिर्फ तुझे ही पुकारा हैं…..
#ks