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27 May 2024 · 1 min read

तुम मुझे भूल जाओगी

तुम मुझे भूल जाओगी कैसे सनम
मैं निवासी तुम्हारे ख़यालों का हूँ
तुमसे पूछे गए तुम जलीं रात दिन
एक उत्तर जगत के सवालों का हूँ।

हर गली घूम आया तुम्हारे लिए
सोचता था कहीं पर तो टकराओगी
मिलती राहत क्षणिक इस ग़लतफ़हमी से
धर के सर मेरे सीने पे सो जाओगी
भाव तुममें भी थे पर न जागे कभी
मैं ख़रीददार उन सब ही भावों का हूँ।

हर घड़ी सांस बुझती रही है मेरी
पर दिवाली मनाता रहा रात भर
ज़िंदगी की पहेली में उलझा हुआ
मैं तुम्हें घर बुलाता रहा रात भर
सिर्फ़ दीदार कर लूँ किसी मोड़ पर
मैं सताया बहुत इन निगाहों का हूँ।

रेत पर नाम तुमने लिखा था नहीं
जो कि इतनी सरलता से मिट जायगा
तुमने मुझको पढ़ा था, रटा था नहीं
कुछ न कुछ तो हृदय में ही बच जायगा
मुझको पड़ कर , समझ कर, न समझा कभी
एक पन्ना तुम्हारी किताबों का हूँ।

आदतें आज तक हैं वही की वही
चाह कर भी कभी मैं बदल ना सका
सबने चाहा मुझे , मैंने चाहा नहीं
जिसको चाहा वही आज मिल ना सका
पुष्प हूँ मैं कमल का तुम्हारे लिए
उससे पहले निवासी मैं नालों का हूँ।
-आकाश अगम

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