तुम मुझको मुहब्बत में कुछ ऐसी सजा देना।
गज़ल
221……1222……221……1222
तुम मुझको मुहब्बत में कुछ ऐसी सजा देना।
जख्मों को हवा देना हर दर्द जगा देना,
जो दर्द हो मीठा हो औ’र मुझको लगे प्यारा,
देना हो सजा मुझको तो ऐसी सजा देना।
मुझको न मिले रोटी गम इसका नहीं होगा,
हिस्से की मेरे रोटी भूखे को खिला देना,
जब ईद कभी आये तो आश हो ये पूरी,
मैं प्यार जिसे करता वो चाँद दिखा देना।
दुनियाँ में नहीं होंगे कल बात है तय यारो,
यादों में अगर आऊँ मिलने की दुआ देना।
कल खूब सुनहरा हो ये सोच न ले डूबे,
बस आज है हमारा कुछ फूल खिला देना।
दुख दर्द की है दुनियाँ जीना है कठिन यारो,
बस प्यार से प्रेमी सँग जीवन को बिता देना।
…….✍️ प्रेमी