तुम मन मेरा बहलाओ रे !
तुम मन मेरा बहलाओ रे !
मैं हूँ आज अधीर प्रिये, तुम मन मेरा बहलाओ रे,
भूल गया हूँ मार्ग प्रिये मैं,तुम ही मार्ग दिखाओ रे ,
आज मुझे ये विश्व प्रिये है शून्य-शून्य सा लगता,
ऐसे में तुम आकर मुझ को जीवन राग सुनाओ रे
मैं हूँ आज अधीर प्रिये, तुम मन मेरा बहलाओ रे ! ,*************************
देखो तो ये अवनि अरे ये भी नभ पर मरती है
निर्जन में अति दूर क्षितिज पे जाकर ये मिलती है,
फिर क्यों तू यूँ ही उदास हो मिलने से डरती है,
भय का कर परित्याग आज कुछ सपने नए सजाओ रे
मैं हूँ आज अधीर प्रिये, तुम मन मेरा बहलाओ रे!************************
मेरे इस चंचल मन की कुछ चंचलता हर ले जाओ,
और अधीर ह्रदय को भी कुछ धीरज सुनो बंधा जाओ,
आओ इस वीरान मरुस्थल में बहार बन छाओ रे
मैं हूँ आज अधीर प्रिये, तुम मन मेरा बहलाओ रे!******************************