“तुम भूल जाओ मुझको,मैं कैसे भूलूँ तुमको”
तुम भूल जाओ मुझको
मैं कैसे भूलूँ तुमको
मेरी जान कुछ न सुनना
जो आवाज़ दूँ मैं तुमको
यह बात भी सही है
यही मत भी है तुम्हारा
लायक नहीं तुम्हारे
अब अंजुमन हमारा
वो दिन और ही थे
तुम्हे जुस्तजू थी मेरी
सखियों में भी तुम्हारे
हर गुफ़्तगू थी मेरी
बिस्तर में जब तुम्हारे
हर सलवटें थी मेरी
जब नींद में रही तुम
हर करवटें थी मेरी
मेरी बात भी न करना
मुझे याद भी करना
मेरी आरजू न करना
मेरी राह अब न तकना
मैं तो हूँ अब अकेला
सोमेश भी नहीं है
अब तो गगन है खाली
जहाँ चाँद ही नहीं है
अब तो चली भी आओ
कि हंसता है यह जमाना
के गीत लिखते लिखते
लो हो गया मनाना
तुम भूल जाओ तुमको
मैं कैसे भूलूँ तुमको
निर्झर