तुम बेबाक बोलो, देश कर्णधार
तुम बेबाक बोलो, कर्णधार, तुम बेबाक बोलो।
कुछ सपनो के दब जाने से, मत खामोशी घोलो।।
एक नहीं जीवन पथ में, राहें होती है कई हजार।
मंजिल भी सबकी अपनी, चुनने के है कई प्रकार।
डरो नहीं अवरोधो से, तुम मन के हाल खोलो।।
कुछ सपनो के दब जाने से, मत खामोशी घोलो।।
तोड़ो नही खुद को तुम, उस चुप्पी को तोड़ो।
हर नई सुबह तुम्हारी, अब नये उजाले जोड़ो।
टूटे चाहे सपने कितने, जीवन नही टूटा करता।
घिरे हुये अंधकारों में, खुद मन दीपक भी जलता।
उस खिलती आभा से तुम उन घुटनो को खोलो।।
कुछ सपनो के दब जाने से, मत खामोशी घोलो।।
बन्द करो ना तुम दरवाजे, उन डर की आवाजों से।
कच्चे मन में भर दो आशा, खुशियों की साजो से।
धीरज धर कह दो सारे, मन के तुम अरमानो को।
नहीं सहो कहो सच को, छोड़ो तुम फरमानों को।
मोल ना अनमोल जीवन , तुम अपनी गांठे खोलो।
कुछ सपनो के दब जाने से, मत खामोशी घोलो।।
होता यहां कभी जिंदगी, दो पाटों का पीसना।
दुनिया की दोड़ो में होता, जीवन सपनों का रिसना।
पिछड़ गये तो क्या हुआ, तुम राह नई बनाओ।
जीवन एक सुंदर पहेली , इसको हँसते सुलझाओ।
बिगुल बजा दो बदलो व्यवस्था, ना ही खुद को तोलो।
कुछ सपनो के दब जाने से, मत खामोशी घोलो।।
डर के आगे जीत तुम्हारे, ना जीवन को हारो।
साफ कहो जो दुख तुम्हारे, ना मन को ही मारो।
मिलती है हार यहाँ, कभी जीत का सिलसिला।
मत घबराओ इन कंटक से, यूँ ही गुल ना ये खिला।
एक बार ये जीवन मिलता, ना इसको तुम खो लो।
कुछ सपनो के दब जाने से, मत खामोशी घोलो।।
तुम बेबाक बोलो, देश कर्णधार, तुम बेबाक बोलो—
(रचनाकार कवि- डॉ शिव ‘लहरी’)