तुम बुहार न सको
तुम बुहार न सको किसी का पथ कोई बात नहीं,
किसी की राह में कंटक बिखराना नहीं।
न कर सको किसी की मदद कोई बात नहीं,
किसी की बनती में रोड़े अटकाना नहीं।
न निभा सको किन्हीं सम्बन्धों को कोई बात नहीं,
तुम रिश्तों की डोर उलझाना नहीं।
न घोल सको वाणी में मिठास कोई बात नहीं,
कड़वे बोलों के नस्तर लगाना नहीं।
नहीं कर सको किसी का मार्ग दर्शन कोई बात नहीं,
इधर उधर की बातों से भटकाना नहीं।
नहीं कर सको किसी का पथ रोशन कोई बात नहीं,
किसी की राह के दिये बुझाना नहीं।
तुम रह न सको सत्य पथ पर अडिग कोई बात नही,
झूंठ पर सत्य का मुलम्मा चढ़ाना नहीं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा