तुम बिन
तुम बिन तुम्हें बताएं कैसे,
रहते हैं हम तुम बिन कैसे?
ना दिल लगता हैं खाने में,
ना दिल लगता हैं पीने में।।
यह तो कुछ भी नहीं हैं प्यारे,
ना दिल लगता है जीने में।
तुम बिन तुम्हें बताएं कैसे,
रहते है हम तुम बिन कैसे।।
चेहरा हंसता रहता हैं बस,
एक नूर सदा ही रहता हैं बस।
क्योंकि….
याद तुम्हें जो करते हैं हम,
पल-पल आहें भरते हैं हम।।
दिल से दुआ करूं मैं कितनी,
सब कुछ थोड़ा लगता हैं अब।
तुम बिन तुम्हें बताएं कैसे,
रहते हैं हम तुम बिन कैसे।।
मेरा प्यार तुम समझ सकोगे,
मुझ पर जीवन वार सकोगे।
दिल का दरिया अंगारों का,
क्या उसको तुम पर सकोगे?
सुख-दुख हिस्सा जीवन का हैं,
क्या मुझसे उसको बांट सकोगे।
दर्द मेरे तो ले लोगे क्या,
अपने दर्द भी बांट सकोगे?
भगवान मुझे तो कहते हो,
क्या मेरी बातें मान सकोगे?
तुम बिन तुम्हें बताएं कैसे,
रहते हैं हम तुम बिन कैसे?
सांस मेरी नहीं हैं मेरी,
वो भी अब बस तुझे पुकारे।
चला सोचूं फिरता सोचूं,
खाता सोचूं नहाते सोचो।।
सोता सोचूं जगत सोचूं,
क्या तुम मुझको सोच सकोगे?
तुम बिन तुम्हें बताएं कैसे,
रहते हैं हम तुम बिन कैसे?
ललकार भारद्वाज