तुम बिन कैसे जिऊँ
तुम बिन कैसे जिऊँ
ना कुछ खाऊँ पिऊँ
दूर रह सकता नहीं
पास कैसे तेरे आऊँ
जब से है देखा तुझे
दिल चैन नहीं पाऊँ
आसपास ही रहूँ तेरे
तेरे संग मैं रहना चाहूँ
दूर तुमसे रहना नहीं
साया हम साया बनूँ
नहीं होश हवास रहे
ख्यालों में खोया रहूँ
महकान तेरी मधु हैं
महका महका फिरूँ
फूल तुम गुलाब का
तोड़कर मैं पास रखूँ
तुम मधुर संगीत हो
प्रेम गीत गाता चलूँ
रूप की महादेवी हो
तेरा हुस्न मुरीद बनूँ
साज तुम प्यार का
ताल मैं बजाता चलूँ
तुम हो उगता सूरज
मैं ढली हुई शाम बनूँ
तुम चमकता चाँद हो
मैं तारों भरी रात बनूँ
दहकती धूप हो तुम
शीतल तेरी छाँव बनूँ
तुम बिन जाऊँ कहाँ
तेरा सिरजनहार बनूँ
मंजिल तुम प्रेम की
पाने की तेरी राह बनूँ
तुम बिन कैसे जिऊँ
ना कुछ खाऊँ पिऊँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत