तुम पड़ोसी (गीत)
तुम पड़ोसी (गीत)
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तुम पड़ोसी दोस्ती के आज भी काबिल नहीं
(1)
तुम लगाकर घात ही चोरी- छिपे ललकारते
गीदड़ों- सा कार्य कर झंडे हमेशा गाड़ते
चैन से जीने का हर्गिज है अभी भी दिल
नहीं
तुम पड़ोसी दोस्ती के आज भी काबिल नहीं
(2)
हर बार तोड़ा है भरोसा जब कभी हमने
किया
रक्तरंजित वारदातों को नहीं थमने दिया
मान लें कैसे कि तुम षड्यंत्र में शामिल नहीं
तुम पड़ोसी दोस्ती के आज भी काबिल नहीं
(3)
इतिहास कहता है सदा तुम द्वेष-ईर्ष्या में फँसे
भाव जहरीले सदा मन में तुम्हारे हैं बसे
छद्म से होगा कभी तुमको मगर हासिल नहीं
तुम पड़ोसी दोस्ती के आज भी काबिल नहीं
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451