*तुम न आये*
चंचल सी चाँदनी छिटकी थी
निशि कुछ मद्धम धूंधली थी
थे नयन इक आस लगाये
रैन बीती तब तुम न आये।
थी पथ पर अनवरत सी खड़ी
अटल बन कभी पर्वत सी अड़ी
बैठी नयन में कजरा सजाये
रैन बीती तब तुम न आये।
आकुल सी हो राह निहारती
कभी मधुर स्मृतियाँ पुकारती
तीव्र समीर आँचल उड़ाये
रैन बीती तब तुम न आये।
हिय भी आज निस्पंद करता
दिल ये अनंत पीड़ा सह लेता
आभास न कुछ मद्धम हुये
रैन बीती तब तुम न आये।
रुँधा कंठ हो नैन भिगोये
शुष्क बन अधर कंपकपायें
धवल नभ स्याह पयोद छाये
रैन बीती तब तुम न आये।
तीव्र उसासों की वो ध्वनी
अनिमिष निहारती धरा सूनी
घनघोर निशी संग तमस लाये
रैन बीती तब तुम न आये।
था वो स्वप्न सुंदर सुनहरा
स्नेहिल स्मृति सागर गहरा
शुष्क रज पद्चाप बिखराये
रैन बीती तब तुम न आये।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक