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9 Feb 2024 · 1 min read

*तुम न आये*

चंचल सी चाँदनी छिटकी थी
निशि कुछ मद्धम धूंधली थी
थे नयन इक आस लगाये
रैन बीती तब तुम न आये।

थी पथ पर अनवरत सी खड़ी
अटल बन कभी पर्वत सी अड़ी
बैठी नयन में कजरा सजाये
रैन बीती तब तुम न आये।

आकुल सी हो राह निहारती
कभी मधुर स्मृतियाँ पुकारती
तीव्र समीर आँचल उड़ाये
रैन बीती तब तुम न आये।

हिय भी आज निस्पंद करता
दिल ये अनंत पीड़ा सह लेता
आभास न कुछ मद्धम हुये
रैन बीती तब तुम न आये।

रुँधा कंठ हो नैन भिगोये
शुष्क बन अधर कंपकपायें
धवल नभ स्याह पयोद छाये
रैन बीती तब तुम न आये।

तीव्र उसासों की वो ध्वनी
अनिमिष निहारती धरा सूनी
घनघोर निशी संग तमस लाये
रैन बीती तब तुम न आये।

था वो स्वप्न सुंदर सुनहरा
स्नेहिल स्मृति सागर गहरा
शुष्क रज पद्चाप बिखराये
रैन बीती तब तुम न आये।

✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

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