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12 Aug 2018 · 1 min read

तुम ना आए

देखों सब आ गए नज़र मग़र तुम ना आए
कब से सूना पड़ा है ,घर मग़र तुम ना आए

सावन की रैना रुत बारिश की जाने को है
हो गयी हैं चश्म-ए-तर मग़र तुम ना आए

ये टीस मेरे मन की जाज़िब तुम्हारा अक्स
डसने लगा मुझें हर पहर मग़र तुम ना आए

रूह तरसती है इक़ झलक को हम क्या करें
आई जिस्म-ओ-जाँ में दर मग़र तुम ना आए

इक़ आरज़ू की सज़ा ऐसी होगी मालूम न था
हम तड़पने लगें इस क़दर मग़र तुम ना आए

हर सुबह हर शब इंतज़ार में हम कैसे गुज़ारे
बह गया आँसुओं का समंदर मग़र तुम ना आए

इन दरीचों से निकल नगर नगर बस तुम्हें ढूंढ़ा
जुस्तजू में फिरे हम दर-बदर मग़र तुम ना आए

___अजय “अग्यार

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