तुम नहीं हो
तुम नहीं हो
कहें अब वो अंदाज नहीं हो …
पहनते थे वक्त-वक्त पर वो ताज नहीं हो।
तुम नहीं हो मुक्कमल लकीरों में…फ़ासले हो!…हाथों के राज नहीं हो ।।
तुम! साँसों पर पलने वाली हयात नहीं हो…
तरसती थी आँखें जिसे देखने को …अब वो बात नहीं हो।
तुम नहीं हो वो जाम जो शामें बनाया करती थी मेरी…
मेरे बेजान दिल को धड़का दो तुम अब वो ज़ज्बात भी नहीं हो।।
तुम मेरी रूह-ए-दर्दगी नहीं हो…
मुझे मना लो बैढकर सामने इतने खुदगर्ज भी नहीं हो।
बेशक… आँखों से नूर बहा सकते हो तुम…
आँसू बहा दो..तुम अब इतने भी हमदर्द नहीं हो।।