तुम दूर गये हमसे जब से।
तोटक छंद
प्रदत्त मापनी- 112 112 112 112
तुम दूर गये हमसे जब से।
सुख चैन नहीं मिलता तब से।
अब अंतर षुष्प नहीं खिलता,
हर मंजर बंजर है कब से।
घन सावन का दिन रात बहे,
उलझी मुख कुंतल बेढ़ब से।
विरही तन स्याह बनी जलके ,
निकले बस आह सदा लब से।
सुध खोकर ढ़ूंढ़ रही तुमको,
मन व्याकुल पूछ रही सबसे।
प्रिय प्रीतम आन मिले हमसे,
अब अर्ज यही करती रब से।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली