तुम दिल जलाते रहे,मै दीये को जलाती रही –आर के रस्तोगी
तुम दिल जलाते रहे,मै दीये को जलाती रही |
इस तरह तेरे इंतजार में,पूरी रात बिताती रही ||
निभाया क्यों नहीं, तुमने वादा,मै सोचती रही |
इस तरह ताउम्र,मै अपने आप को सताती रही ||
दिए है जो दर्द तुमने इतने,जख्म भी गहरे हो गये |
किसी तरह दिन रात,जख्मो पर मरहम लगाती रही ||
सुनकर भी अनसुनी कर देते हो,सोचती हूँ बार बार |
जबकि जिन्दगी के हालात,मोबाइल पर बताती रही ||
बादल बरसते रहे पूरी रात,फिर भी मै प्यासी ही रही |
किस तरह रोकर,आँसुओ से अपनी प्यास बुझाती रही ||
भेजी थी इतला रस्तोगी को,अपने आखरी सफर की मैंने |
किस तरह अपने जनाजे को,यादो का कफन उढ़ाती रही ||
आर के रस्तोगी