तुम…. तब और अब (हास्य-कविता)
तुम…. तब और अब
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तब तुम अल्हड़ शोख कली थी,
अब पूरी फुलवारी हो,
तब तुम पलकों पर रहती थी,
अब तुम मुझ पर भारी हो ।
तब तुम चंचल तितली सी थी,
अब तुम एक कटारी हो,
तब थे नैनोनक्श कँटीले,
अब तुम पूरी आरी हो ।
तब तुम चंदा सी लगती थी,
अब पूरी चिंगारी हो,
तब तुम खास थी इस दुनियाँ में,
अब तुम दुनियाँदारी हो ।
तब तुम आइ लव यू कहती थी,
अब तुम देती गारी हो,
तब तुम मेरा क्रेडिट सी थी,
अब तुम मेरी उधारी हो ।
तब तुम नयी नवेली थी,
अब बच्चों की महतारी हो,
तब तुम होगी किसी और की,
अब तुम प्रिये हमारी हो ।
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**हरीश*लोहुमी**
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