तुम जाते हो।
देखो,यह अवनि की छाती आज धड़कती कम सी है।
देखो, यह रूई की बाती आज तड़कती कम सी है।
देखो,यह अंशुमाली में आज नही है तीखा ताप।
देखो, चंदा की शीतलता आज नहीं पड़ती पर्याप्त।
देखो दीपक आज रोशनी के सम्मुख कतराता है।
देखो तृष्णा और सुधा का आज टूटता नाता है।
देखो अंबर के आतप की आज तितिक्षा खोती है।
देख देख कर के नियति , अपनी रचना पर रोती है।
आज देखनी होगी तुमको उत्साहों की दारुण हार।
आज देखना होगा तुमको इस पीड़ा का पारावार।
©Priya ✍️