“तुम जागते रहो!”
सब नींद में हैं सोये,
बस तुम जागते रहो।
सब भीड़ में हैं खोये,
बस तुम भागते रहो।
किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगता,
और तुम उलझन में हो पड़े।
सब अपनी सोचकर कटकर निकले,
और तुम इंसानियत के लिए लड़े।
नींद ऐसी है सबकी कि टूटती नहीं,
सब्र ऐसा है सबका कि छूटती नहीं।
माना खुश हो तुम अपने आशियाने में,
जरा मदद तो करो खुद को बचाने में।
यहाँ आने के बाद सदा कोई टिकता नहीं,
भई सब कुछ तो यहाँ भी बिकता नहीं।
तुम्हें फर्क क्या है पड़ता चाहे कोई रोये,
सब के मातम पर बस तुम हँसते रहो।
सब नींद में हैं सोये,
बस तुम जागते रहो।
सब भीड़ में हैं खोये,
बस तुम भागते रहो। जागते रहो।।
✍️हेमंत पराशर✍️