तुम गर मुझे चाहती
तुम गर मुझे चाहती तो बात कुछ और होती
कहने को तो वैसे सांसें चल रही है,
सांसों में गर मिठास घुल जाती तो बात कुछ और होती।
नींद में अब ख्वाब है उतर आये,
ख्वाब में फिर वो बरसात घिर आती तो बात कुछ और होती।
अभी-अभी परछाई है टकराई ,चिंगारी भड़क उठी,
चिंगारी गर दिल को चीर जाती तो बात कुछ और होती।
होठों पर शबनम की बूंद है ठहर आई ,
बूंद गर प्यास बुझा पाती तो बात कुछ और होती
हुसन की दौलत गुमान कर रही है ,
दौलत गर ताउम्र साथ दे जाती तो बात कुछ और होती ।
क्यों आग “माही” पल भर को सुलग रही है,
आग गर ताउम्र को सुलग जाती तो बात कुछ और होती।