तुम गए जैसे, वैसे कोई जाता नहीं
तुम गए जैसे, वैसे कोई जाता नहीं,
एक अलविदा सुनने को तड़पाता नहीं।
बहकी हवाओं का पता कोई बताता नहीं,
इस दुनिया के उस पार सफर कर पाता नहीं।
खरीद लाऊँ साँसें, वो बाजार कोई लगाता नहीं,
मिट गया जो अस्त्तित्व, लौट कर आता नहीं।
एहसास उन आहटों को जगाता नहीं,
शब्द जो रो पड़े, उन्हें हंसाता नहीं।
सूरज झरोखों पर अब गुनगुनाता नहीं,
स्नेह थपकियाँ देकर सुलाता नहीं।
सफर लहरों का, मुक्कम्मल हो पाता नहीं,
टूटकर फ़ना होने से, कोई उन्हें बचाता नहीं।
पतझड़ फूलों की चादर बिछाता नहीं,
गिरते पत्तों को बढ़कर उठाता नहीं।
पगडंडियों को घर की दहलीज तक पहुंचाता नहीं,
मकान ईंटों का घर अब कहलाता नहीं।
गुलमोहर सपनों को अब महकाता नहीं,
तेरे साथ की साजिशों को रचाता नहीं।
आईना बिखरी शख्सियत के सच को दिखाता नहीं,
तेरी तलाश में निकले “मैं” से मुझको मिलाता नहीं।