तुम गए कहाँ हो
तुम गए कहाँ हो?
तुम तो अब भी बसते हो मन में ।
जीवन के हर एक स्पंदन में ।
कलियों की कोमल छुअन में ।
टीसे उन कांटों की चुभन में।
दिन के उजली रोशनी में ।
भीगी रात की खामोशी में ।
पुतली बन बैठे इन आंखों में।
फूलों , पत्तियों ,खुशबु ,शाखों में।
पेड़ो की सरसराहट में।
कदमों की आहट में।
ओ रूह के वाशिंदे मेरे,
जीवन के चमकते सितारे।
तुम्ही हो प्रारब्ध तुम्हीं किनारे ।
डॉअमृता शुक्ला