तुम कुछ भी समझो मुझे
तुम कुछ भी समझो मुझे,राधा मत समझना
सर्वस्व लुटा कर भी केवल प्रियतमा कहलाऊंगी
तुम कुछ भी समझो मुझे,लेकिन मैं सीता नहीं हूँ
लाँछन सह जाऊँगी लेकिन अग्नि से
अपनी पवित्रता कभी ना बताऊँगी
तुम कुछ भी समझो मुझे,द्रौपदी ना समझना
मैं अर्जुन के निर्णय को सदैव गलत ही बताऊँगी
पांच पतियों की पत्नी न बन पाऊँगी
तुम कुछ भी समझो मुझे,अहिल्या ना समझना
मैं पत्थर ही रह सकती हूँ लेकिन
अपनी मुक्ति को राम को नहीं बुलाऊँगी
मैं, मैं तो बीज हूँ सृष्टि के सृजन का
तुम जहाँ फेंक दोगे वहीं कुछ नया उगाऊँगी ll