तुम कुछ बताती नहीं…..
तुम कुछ बताती नहीं और मैं कुछ छुपाता नहीं
राज़ गहरा इन आँखों का ,मैं पढ़ भी पाता नही ।।
कोई शिकवा और शिकायत ,कहाँ करती हो तुम
और बिन कहे तो कुछ भी ,मैं समझ पाता नही ।।
इक़रार न सही, इंकार भी कहाँ करती हो तुम
खुल के बरसो तुम ,ये सुखा अब सहा जाता नही ।।
तुम्हारी मजबूरियों ने तो तुमको पत्थर बना दिया
शायद मेरा गम तभी, तुमको नज़र आता नहीं ।।
रोक लो मुझे आज तुम ,मेरा हाथ पकड़कर
गया वक़्त हो जाऊंगा कल , जो वापिस आता नही ।।