तुम किसी की
तुम किसी की वेदना
को पढ़ सके ना
सब पढ़ाई व्यर्थ है
फिर तो तुम्हारी
शिखर सारे छू लिए
समृद्धियों के
अंत तक जाकर चढ़े
हो वृद्धियों के
भूमितल तक दृष्टि भी
गर जा सके ना
सब चढ़ाई व्यर्थ है
फिर तो तुम्हारी
युद्ध कितने लड़ लिए
जग जीत डाले
प्राण अनगिन किए
मृत्यु के हवाले
पर सृजन का लक्ष्य
मन में ला सके न
सब लड़ाई व्यर्थ है
फिर तो तुम्हारी
जिन्होंने सर्वस्व दे
तुमको बढ़ाया
रक्त भी जिनने तुम्हारे
हित चढ़ाया
वक़्त पर उनके लिए
कुछ कर सके न
सब बड़ाई व्यर्थ है
फिर तो तुम्हारी