तुम कहो या न कहो,है उम्रभर की यह प्रतीक्षा
तुम कहो या न कहो,है उम्रभर की यह प्रतीक्षा
और तुमसे जो मिली है ,वो व्यथा सहता रहूंँगा।
इंद्रधनुषी रंग के, तुम तो हो अवयव कदाचित….
व्योम के मस्तक की शोभा तुम बढ़ाती ही रहोगी…
और मैं तारा हूंँ टूटा कल्पनाओं के गगन का
गर कभी मैं टूट जाऊं अनवरत गिरता रहूंँगा।
तुम कहो या न कहो,है उम्रभर की यह प्रतीक्षा
और तुमसे जो मिली है ,वो व्यथा सहता रहूंँगा।
हों हजारों ही खुशी कायल तुम्हारे उस छुवन को
जिसको मैंने सोच कर ही कर दिया खुद को समर्पित
जानता हूंँ तुम हंसोगी मेरे निरर्थक कोशिशों पर
जिसको मैं अवधार कर नव गीत यूंँ गढ़ता रहूंँगा।
तुम कहो या न कहो,है उम्रभर की यह प्रतीक्षा
और तुमसे जो मिली है ,वो व्यथा सहता रहूंँगा।
चाहता हूंँ कि कोई छाया भी न छू पाए तुमको
और अवसर ही नहीं हो वेदना को या तपन को
तुझ पे गम आए अगर तो मैं सकल विध्वंस कर दूंँ
इन विवादित से विचारों में सदा ढलता रहूंँगा।
तुम कहो या न कहो,है उम्रभर की यह प्रतीक्षा
और तुमसे जो मिली है ,वो व्यथा सहता रहूंँगा।
दीपक झा रुद्रा