तुम कहो कोई प्रेम कविता
तुम कहो न कोई प्रेम कविता।
या कहो दिन आखिर कैसे बीता।
क्या आंखों को मेरा था इंतज़ार
या दिल सपनों के घोड़े पर सवार।
क्यों चुप से बैठे हो यूं नज़रे झुकाए
या परेशां हो किसी पे ,हो तिलमिलाए।
हाथ में हाथ लेकर कहो कोई बात
और वादा करो रोज़ होगी मुलाकात।
मुस्कराए हम छोड़ कर परेशानियां
आखिर अब नहीं,तो कब करेंगे नादानियां
सुरिंदर कौर