तुम कहां
कह रहा प्रियतमा दंभ नहीं बेपनाह प्यार किया
घनेरी जुल्फो मे कभी आखों मे डूब इजहार किया
बिंदिया सजे ललाट ज्यों चमके सूरज दोपहर का
काम कमान भंवे कजरारे नयनों से रसपान किया
गुलाबी पंखुडी ओठ गालों का मतवाला खिंचाव
बेचैन हुए मदहोश हुए डूबे उतरे कई बार किया।
तराशा बदन चंदन खुशबू मदमस्त चाल मतवारी
नजर के तीर अदा भरपूर मरे जिए सौ बार किया।
आलिंगन स्नेह चाहत मिला-दिया भरपूर प्यार
खूब किया कम किया, ज्यादा तुमने प्यार किया।
आओ फिर एक बार, है तुमको मुझसे प्यार बहुत
मै यहां तुम कहां ढूँढू कहां? ऐसा क्यों यार किया?
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297