तुम कहाँ बैठे हुए हो मुँह फुलाए
दिल भला लम्हात वो कैसे भुलाए
जब खड़े थे सामने तुम सिर झुकाए
वो मिला बैठा हुआ अपने ही भीतर
हम जिसे चारों दिशा में खोज आए
तुम बहारों में बनो पतझड़ भले
हम तो बैठे हैं खिजाँ में गुल खिलाए
मैं यहाँ पर चाँद-तारे ले के आया
तुम कहाँ बैठे हुए हो मुँह फुलाए
आप ही बतलाइए तरकीब कोई
नाज-नखरे किस तरह ‘संजय’ उठाए