तुम कब आओगे
सावन की…
फ़िज़ाओं के बीच ..
मुहब्बत की सरिता में ….
डुबकी लगाती…
रेगिस्तान की तपते रेत सी ….
तेरी अपनी ही दिलुरवा…!
तप रही है…
कनक की भाँति…
जलते इश्क़ के अँगार पर….
अपना नूरानी हुस्न लिए….
मुस्कुराती हुयी…
पिघल जायेगी..
हो जायेगी फ़ना….!
जिस्म के..
हर ज़ख्म को छुपाती …..
रुह की तड़प को….
ज़िगर की तय में दफ़न कर…..
भर रही है आहें….!
अपने पिया के …
आगोश में समाने को…
विलीन होने को…
एक बूँद सुधा रस ….
पान करने को…
बैठी है कबसे ….
दिल के झरोखे पर….!
अब तो तुम…
आ भी जाओ ….!
तुम कब आओगे….?
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ प्रतिभा