तुम और मैं
तुम और मै
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तुम इंग्लिश पढ़ी लिखी हो,
मै हिन्दी भी भूल चुका हूं।
तुम बुलेट ट्रेन जापान की हो,
मै मिचकु खां का ठेला हूं।
तुम बेंगलोरी सिलकन साड़ी हो,
मै फटा हुआ कुर्ता गाढ़े का हूं।
तुम बसंत ऋतु की फुलवाड़ी हो,
मै ग्रीष्म ऋतु का पतझड़ हूं।
तुम बैंक लॉकर की बड़ी चाबी हो
मै छोटा सा ताला ड्रॉवर का हूं।
तुम बड़े मैनेजर की पी ए हो,
मै चपरासी छोटे बाबू का हूं।
तुम राजमहलों की बड़ी रानी हो,
मै झोपड़ी का गरीब बालक हूं।
तुम नदी की मीठी चंचल धारा हो,
मै समुंद्र का केवल खारा पानी हूं।
तुम मृग शावक सी कोमल हो,
मै स्टील से कड़ी कठोर धातु हूं।
तुम पूर्णिमा की चमक चांदनी हो,
मै अमास्या का घोर अंधेरा हूं।
तुम विश्व सुंदरी से बढ़कर हो,
मै अफ्रीका का काला कलूटा हूं।
तुम अमीरो की वैभव शाला हो,
मै गरीबों की एक मधुशाला हूं।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम