“तुम और मैं “
तुम शब्द बनकर झरा करो ,
मैं लेखनी बन मिटा करूँ,
नव सृजन के अंकुरों में ,
झांककर तुम तका करो ,
मृण्मयी हो कर मैं तुम्हे ,
अपने श्वांस से सिंचित करूँ ,
तुम साज़ बनकर बजा करो,
मैं गीत बनकर मिटा करूँ,
नवस्वरों के राग में ,
सुर बन कर फिरा करो ,
स्वर – लहरी हो मैं तुम्हें ,
अपने स्वरों से सज्जित करूँ |
……निधि……