तुम और मैं
तू गरजता रहा
मैं तरसता रहा
शगुफ़ा-ए-दिल
हमारा बनता रहा ।।
दरस दियो, इस चाहत में आँखें
छलकती रहीं, तू इतरता रहा
तू मचलता रहा, मैं पिघलता रहा ।।
वादें बचें ना, कसम अब बाकी
विश्वाश नहीं रहा बातों का
तू लरजता रहा, तू सहकता रहा
मैं सहमता रहा, तू टहलता रहा ।।
आँसू का तेल बना फिर भी
मैं भभकता रहा, सपनें बुनता रहा
एक एक रोड़ा था जोड़ा
तब जाकर यह कुटीर बना
तोड़ दियें सारे सपनें
हाय ! मेरा कैसा यह करम बना ।।
नेताजी” अब तुम हीं बतला दो
तू तान में रहा, तू शान में जिया
क्यों मैं विराम से उठा, मैं विराम को चला
क्यों मैं घुटता रहा, क्यों मैं जी के मरा
क्यों मैं जी के मरा, क्यों मैं ज़िंदा गड़ा ।।