तुम और बातें।
शीतल चाँदनी में लिपटीं वो हसीन रातें,
तेरी जुल्फों को छूने के लिए
बेकरार , बेकल, बदहवास –
हवा के मासूम झोंके,
मदमस्त कलियों की नाजुक
पंखुड़ियों से निकलता मदहोश
करने वाला असीम सौरभ और
तेरे पुलकित, कमनीय तन से लिपटने
की रंगीन परागों की मादक आतुरता,
सागर की चंचल लहरों में
तेरे अनिंद्य रूप की झलक के लिए
बेहिसाब प्रतिस्पर्धा और
सुनहरे पंखों के सहारे नीरव
नीलाम्बर में उड़ते बादलों की
अलबेली, नटखट पंक्तियों में –
जल की प्यासी बूँदों के माध्यम से
अलकों में उलझते हुए तेरे अधरों पर
बिखर जाने की उत्कट अभिलाषा,
आज कुछ भी नहीं है
पर सबकुछ है – यादों में।
अनिल मिश्र प्रहरी।