तुम और तुम्हारा झुमका-एक विमर्श
तुम और तुम्हारा झुमका-एक विमर्श
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1.
झुमके पर
शहर बरेली यूं नहीं हुआ मशहूर
सभी ने सुना होगा
झुमके का गाना जरूर
बरेली का झुमका चौराहा अब
सेल्फी प्वाइंट बना है
झुमके के महत्व पर यह शहर
आज भी तना है
झुमका सोने का हो निखालिस
या चढ़ा हो सोने की पालिश
फर्क क्या
झुमका बेशकीमती जेवरों की सूची में
पहले नम्बर पर आज भी खड़ा है
इसका विकल्प ही नहीं तभी तो
गोरी के गाल पर दिन रात चढ़ा है ।
2.
तुम इसे झुमका कहती हो
मां इसे स्त्री की
सुंदरता की निशानी
शादी में इसको चढ़ावे में
जाना जरूरी है
यही तो सब कहती रहीं
घर की बुजुर्ग महिलाएं
रिश्तों की बुआ मौसी
ताई, दादी और नानी
3.
आज का विमर्श
मेरा अपना नहीं है
बहुत दिनों से दिल में रहा
आज शब्दों से बाहर आकर
सबके सामने टिका है
आज की कविता का शीर्षक भी
‘तुम और तुम्हारा झुमका’ है
वह जो तुम्हारे गालों को
छू कर निकल लेता है
एक बार नहीं
गिनती करूं तो तकरीबन
दिन में तो सौ सौ बार
तुम्हारे कोमल गालों का
बेखौफ़ चुम्बन लेता है
सुनो मेरी भी गुनो
बोल दो इस झुमके से
मेरी निजी शिकायत
“कहो थोड़ा कम हिला करे
हिले भी तो गालों तक
जाने में परहेज करे”
अब इसको कुछ तो सम्हालो
ये तो प्रतिद्वंदी है मेरा
न माने, तो इसको कान से निकालो
कुछ तो सही, इसको दो सजा
ये तो अकेला बिना रोक टोक
लेता जाता है हर वक्त,
गाल को यूं , छूने का मजा
– अवधेश सिंह