तुम उस पार खतरे में
जुदा जो कर रही हमको नदी की धार खतरे में
हैं हम इस पार खतरे में तो तुम उस पार खतरे में
अगर ईमानदारी ने सुनाया फैसला तो फिर
तुम्हारी जीत खतरे में हमारी हार खतरे में
यकीनन टूटना होगा तुम्हारी नफरतों को अब
सफीना डूबना तय है कि है पतवार खतरे में
अगर जन्नत से बनकर जोड़ियाँ आती हैं धरती पर
तो फिर है जात मजहब की तिरी दीवार खतरे में
गरीबों के लिए रोटी की कीमत गर नहीं समझे
तो फिर सच है तुम्हारी भी पड़ी सरकार खतरे में
न अब गुमराह कर पाओगे तुम उड़ते परिंदों को
तुम्हारी साजिशों का है यहाँ व्यापार खतरे में
अगर अल्फ़ाज का सौदा किसी से कर लिया संजय
मुकम्मल हो नहीं सकती गज़ल अशआर खतरे में