तुम आना ( भाग -२)
आ गए सरस फागुन के दिन,
इस बरस माधुरी तुम आना l
ये मन उलझा है धागों सा,
आकर तुम इनको सुलझाना l
अमराई के कोयल बन के,
सांझ- सँवेरे गीत सुनाना l
तुम अपनी हँसी ठिठोली से,
ये मन आंगन को हर्षाना ll
बिन दरस तुम्हारे व्याकुल है,
ये चांद इक झलक दिखलाना l
हिय में तृष्णा है बरसों से,
आ कर प्रेम सुधा बरसाना l
बैठ कर किसी पगडंडी पर,
हमसे मधुर मधुर बतियाना ll
तुमसे ही ये जीवन स्पंदन,
प्रीत निमंत्रण मत ठुकराना l
मधुमास मधुर मनोहारिणी,
इस बार प्रिये संग बिताना l
तुम हमें लगा कर बाहों से,
मनुहार अमिट यूं दे जाना ll
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल