तुम आना एक शाम
तुम आना एक शाम
अपने बालों को
बादल कर जना
उड़ती हवाओं के पंखों पे चढ़
खेतों में उतर जाना
तुम आना आस के जैसे
भूखा बच्चा तकता हो
मां को प्यास में जैसे
तुम आना और बेमाई फटी धरती में
बूंदों के दूध भर जाना
तुम आना एक शाम
जेठ बैसाख के तपते दिन को
सावन भादो कर जाना …
~ सिद्धार्थ