तुम आना इस तरह
तुम आना इस तरह से कि, मुझे मेरे होने का एहसास रहे।
मेरे सपनों की तपती धरा पर, तेरी शीतलता का आभास रहे।।
बहुत भुलाया खुद को मैंने, कितने दिशाहीन से राह पकड़।
अब और न भ्रम पलने देना, मुझे केवल तुझ पर विश्वास रहे।।
तुम आना इस तरह से कि, हम दोनों सदा निष्पाप रहें।
न दूर रहें न ही पास रहें, न हृदय में कुछ अनुताप रहे।।
तुम मुझे पढ़ो बारीकी से, मैं तुम्हे जान लू ठीक ठीक।
हम दोनो को एक दूजे का, होने का न कोई संताप रहे।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०९/०३/२०२२)