तुम आओ !
तुम आओ !
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तुम आओ !
देख पथरीली आंखों का नीर ,
द्रवित हृदयों में पीड गंभीर !
कालाग्नि की दाहकता से
वत्स टकराओ !
तुम आओ !
हलचल विहीन ज्ञान , निर्विकल्प ज्ञान
निर्विकल्प अवस्था , निर्विकल्प विज्ञान ;
चान्द्रायण तप , कृच्छ , पराक् आदि व्रतों में ,
लगो ! स्वत्व जगाओ !
तुम आओ !
स्थूल देह अन्नमय , सन्निहित प्राणमय
अंत:स्थित मनोमय , भीतर प्राणमय ,
पंचकोषों में परस्पर भीतर आनन्दमय ;
अनन्त अखण्ड समाधि लगाओ !
तुम आओ !
‘ घट ’ नाम ‘ घट ’ रूप
‘ पट ’ नाम ‘ पट ’ रूप ,
अनन्त सत्ता , अनन्त आनन्द बोध ,
नाम रूप प्राकट्य अनन्त शोध ;
सत्-चित्-आनन्द-अस्ति , भाति ,
प्रिय उर्ध्व परात्पर ध्यान लगाओ !
तुम आओ !
मल्लिका-मालती-जाती – यूथिका संवहित ,
दिव्य पुष्प प्रफुल्लित , कमल-कमलिनी विकसित् !
शीतल मन्द सुगन्ध पवन संचरित ,
चान्द्रमसी ज्योत्सना सम्यक् विकसित् !
अनन्त आनन्द सर्वत्र मादकता में ,
स्नेह स्पर्श बढ़ाओ !
तुम आओ !
परस्पर सम्मिलन , परस्पर परिरम्भण
उत्कट उत्कंठा , परस्पर आलिंगन !
सम्प्रयोगात्मक श्रृंगार रस समुद्र में ,
मंगलमय मुखचन्द्र की अधर सुधा बहाओ !
तुम आओ !
सरसी-सरोवरों में , कुमुद-कुमुदनियों में ,
कमल-कमलनियों में , हंस-सारस-कारण्डव आदि विहंगमों में ,
स्निग्ध माधुर्य प्रादुर्भाव कराओ !
तुम आओ !
अमावस्या की अन्धियारी रातों में ,
घनघोर घटा उमड़ रही ,
दादुर ध्वनि सर्वत्र सुहावन लागे ,
दामिनी दमक रही !
मन्द-मन्द शीतल बयार सुगन्धित ,
प्रियतम न वियोग लगाओ !
तुम आओ !
युग-युगान्तरों , कल्प-कल्पान्तरों से संवहित ,
सतत् आनन्द सिन्धु में माधुर्य सार ,
कालान्तर में आज धधकती – कैसा व्यथित सत्य , उद्वेग – विक्षेप उद्गार !
सत्य-न्याय-धर्म , पीड़ितों के प्राण हित ,
दिव्य तेज संवर्धित अथाह शौर्य ले ,
कुटिलों पर काल बरसाओ !
तुम आओ !
✍? आलोक पाण्डेय
वाराणसी, भारतभूमि