तुम आओ एक बार
तुम आओ एक बार।
अनवरत प्रतीक्षारत ऑंखें
अश्रु भीगी
पलकों की पाॅंखें
चित्रित-सी एकटक
पथ रही है निहार।
तुम आओ एक बार।
तुम्हारे आने का
अटूट विश्वास
आतुर हृदय
हर आहट पर पुलकित
करने को मनुहार।
तुम आओ एक बार।
समय की तपती धूप
मनोनभ में भाव मेघ
आकुल है
झूम झूम कर
करने को सत्कार।
तुम आओ एक बार।
तुम्हें ना देखा
फिर भी
पागल प्राण
बंधे हैं तुमसे
निराकार ! बन साकार।
तुम आओ एक बार।
हर क्षण हर ओर
तेरी मधुप-सी
मर्म भेदी मधुर गुंजार
अपना लो आकर
यह अस्फुट -सी झंकार।
तुम आओ एक बार।
-प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर ( राजस्थान)