तुम अभी आना नहीं।
शहर की आब-ओ-हवा है ठीक नही तुम अभी आना नही।
हर सम्त ही क़यामत है आयी यहाँ तुम अभी आना नही।।1।।
सियासत की है बड़ी मजहब पर इन स्याह सियासतदानों नें।
बंट गया है सारा शहर ही कौमों में तुम अभी आना नही।।2।।
मशहूर था बड़ा खुलूश-ए-मोहब्बत इस शहर के बाशिंदों का।
अब तो अदावत ही अदावत है यहाँ तुम अभी आना नही।।3।।
उजड़ी है सारी की सारी बस्तियाँ ही इंसानियत कहीं दिखती नही।
कोई किसी की ख़ैरियत पूछनें वाला नही तुम अभी आना नही।।4।।
रहते थे बस्ती में जो राम-ओ-रहीम आमने-सामने कभी।
रहते है अब वो मंदिर-ओ-मस्जिद में तुम अभी आना नही।।5।।
हर शू खामोशी का सन्नाटा है पसरा परिंदे भी शज़रो पे आते नही।
उदास है अभी यह शहर ही बहुत तुम अभी आना नही।।6।।
हर खुशी-ओ-गम बांटकर जीने वाले अब हो गए है दुश्मन-ए-जाँ।
जाने मौत कब ले ले आग़ोश में अपनी तुम अभी आना नही।।7।।
वह बूढ़े चाचा अब स्कूल वाली बस अपनी बस्ती में लाते नही।
बच्चों का स्कूल है घर से बहुत ही दूर तुम अभी आना नही।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ