तुम्हे हमारी क्या जरुरत हैं।
-: तुम्हे हमारी क्या जरूरत है। :-
तुम तो हो विद्वान अभी भी
मैं गँवार पहले जैसे ही।
नज़र वंही है नयन ठहर गए
दिल आज भी वैसे ही।
तुम्हे हमारी क्या जरुरत है।
जीलोगे तुम वैसे ही।
तारे गिनता हुवा रात को
मैं बदलूं करवट वैसे ही।
चंद्र खिलौना मिलन सलोना
लगे मनोहर वैसे ही।
तुम्हे हमारी क्या जरूरत है।
जीलोगे तुम वैसे ही।
चिर निंद्रा में स्वपन क्षण में
दिखते हो तुम वैसे ही।
रात बेचारी लम्बी हो गई
मैं जांगु अक्सर वैसे ही।
तुम्हे हमारी क्या जरूरत है।
जीलोगे तुम वैसे ही।
सुबह सवेरे मिल उपवन में
नयन मिले फिर वैसे ही।
अरसो बाद मिले फिर कोई
आओ मिले फिर वैसे ही
तुम्हे हमारी क्या जरुरत है।
जीलोगे तुम वैसे ही !!
-भगवान सिंह चारण डीडवाना