तुम्हे देखने को भी क्या आइना दूँ
तुम्हें देखने को भी क्या आइना दूँ
तुम्हें असलियत भी तुम्हारी बता दूँ
तुम्हें शौक जज्बात से खेलने का
तो क्या खुद को ही मैं खिलौना बना दूँ
इधर इश्क है तो उधर मेरे अपने
मैं अब किसके हक़ में यहाँ फैसला दूँ
जुदाई के गम में तड़पता ये दिल है
मिलो तुम जरा तो इसे भी हँसा दूँ
न अब गम रुलाते न खुशियाँ हँसाती
मैं टूटे हुए दिल को क्या हौसला दूँ
मिटा दर्द की दे लकीरें जो दिल से
मैं अब ‘अर्चना’ कौन सी वो दवा दूँ
04-10-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद