तुम्हें मालूम नहीं शायद ..
तुम्हें शायद मालूम नहीं ,
तुम्हारे दरम्यान धार्मिक उन्माद फैलाकर ,
कुछ लोग फायदा लेते है ।
तुम्हारी परस्पर नफरत की आग में ,
यह अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकते हैं।
यह भ्रष्ट नेता ,यह ढोंगी पंडित और पाखंडी मुल्ले ,
तुम्हें बेवजह क्यों भड़काते है ?
ज़रा सोचो तो ! इनके बहकावे में आकार ,
अपने देश की गंगा जमुनी तहजीब को हम ,
बदनाम करते हैं।