तुम्हें नहीं पता, तुम कितनों के जान हो…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
तुम्हें नहीं पता,
तुम कितनों के आधार हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम कितनों के प्यार हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम कितनों के यशगान हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम हर ग़म के मुस्कान हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम बूढ़ी आंखों के सितारे हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम हर बचपन के शान हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम कितने आंगन की खुशियां हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम हर दीवार के पहचान हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम सुबह के तबस्सुम हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम ही सांझ पहर के चांद हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम ही रात के नींद हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम ही सुबह के अरमान हो,
तुम्हें नहीं पता,
तुम हो कितनों के जिन्दगी,
तुम्हें नहीं पता,
तुम कितनों के जान हो।