तुम्हें जोहते बैठे रहे चौबारों में /ग़ज़ल/
तुम्हें जोहते बैठे रहे चौबारों में
देखने को मजबूर हुए ख्वाबों में
बेसुध मन बेखबर हो गए ज़माने से
जबसे जीने लगे तेरी इन वफ़ाओं में
मेरी राधा रानी मिल कभी मधुबन में
आके लिपट जा आज सूनी बाहों में
न हो ओझल मेरी नज़रो से एकपल भी
आके बस जा तू आज मेरी निगाहों में
दौडी आ दौडी आ पुकारते मेरा नाम
चुनरी उड़ा, मेरे संग झूम नाच बहारोँ में
बन जा हमसफ़र बाँध ले प्रीत की डोरी
फूल बिछाउँगा तेरी ज़िंदगी की राहों में
कवि :-दुष्यंत कुमार पटेल “चित्रांश”