तुम्हें क्या पता
तुम्हारे बिना मैं मुस्कुराती हूं
खुश होने का ढोंग रचाती हूं
तुम न सही पास यादें तो हैं
उनके साथ हर पल बिताती हूं
तुम तो चले गए यूं नज़रें फेर
मैं अब भी ख़्वाब सजाती हूं
तुम्हारे लिए जो थी दिल्लगी
मैं तो उस पर जान लुटाती हूं
आबाद रहो चाहे कहीं रहो तुम
अपने रब को यूं रोज मनाती हूं