तुम्हें कैसे समझाऊं मैं
रहना मुश्किल है अब
तेरे बिन तन्हाई में
तुम समझते ही नहीं हो
तुम्हें कैसे समझाऊं मैं
छोड़ दूं ये रास्ता या
अब तुझे घर ले आऊं मैं।।
आज चांद भी तुझसे जलता है
मैं तो उसमें भी तुम्हें ही देखता हूं
ज़िक्र आता है जब चांद का कहीं
उसे भी तेरे नाम से पुकारता हूं।।
छुआ था हाथ मेरा तुमने
अब कई बरस बीत गए
लगता है मुझे तो अभी अभी
तुम मुझको छूकर गए।।
इस दिल में है बस याद तुम्हारी
है मिलने का वो एहसास तुम्हारा
आता है जीवन में जो भी चाहता हूं
बस आता नहीं कोई जवाब तुम्हारा।।
क्या चाहते हो तुम अब बतलाओ
मुस्काते हुए मेरे जीवन में आओ
या फिर अब मेरे दिल से जाओ
अपनी रज़ा तुम जल्दी बताओ।।
तुम आओगे जीवन में मेरे या
जाओगे दिल से मेरे, मान जाऊंगा मैं
रोज़ रोज़ मरने से अच्छा है
मैं जी जाऊं या एक बार ही मर जाऊंगा मैं।।