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8 Jan 2020 · 1 min read

तुम्हें अपने ऊपर गुमाँ बहोत है तुम्हारे जैसे इंसा बहोत है

तुम्हें अपने ऊपर गुमाँ बहोत है
तुम्हारे जैसे इंसा बहोत है

कल तक जिसे इंसा होने का फक्र था
आज उस बस्ती में शैतान बहोत है

गैरों की बस्ती में ये डर कैसा
अपनी बस्ती के दुश्मन बहोत है

हार जाते है अक्सर अपनो के समक्ष
अपनों में छिपे सिकन्दर बहोत है

दिखावे की दुनिया है ज़नाब
चेहरों के ऊपर मुखोटें बहोत है

ज़िन्दगी की मज़बूरियां शहर खींच लाई
गाँव की मिट्टी में शहद बहोत है

किताबी ज्ञान आज भी अधूरा है
ज़िन्दगी की ठोकरों में सीख बहोत है

दवाएं आज भी बेअसर नज़र आती है
माँ की दुआओं में असर बहोत है ।

भूपेंद्र रावत
29।12।2019

1 Like · 1 Comment · 304 Views
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